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________________ 1 तीसरा बोल-१८५ में फंस जाते हैं, उन सुखो के पीछे रहे हए विकारो को या दुखो को वह देखते नही और इसी कारण धर्म पर उनकी श्रद्धा नही जमती । अतएव सब से पहले यह देखना चाहिए कि धर्म के द्वारा तो सुख-साता चाही जाती है, उसके पीछे सुख रहा हुआ है या दु.व ? सांसारिक सुखो के पीछे क्या छिपा हुआ है, यह देखने से प्रतीत होता है कि वहा एकात दुख ही दुःख है । इस प्रकार दुख की प्रतीति होने पर फल-स्वरूप धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न होगी । यह बात विशेषतया स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लीजिए, जिससे सब सरलतापूर्वक समझ सक । एक नगर मे दो मित्र रहते थे। उनमें से एक मित्र वर्म पर श्रद्धा रखता था और सासारिक सुखो को दुःखरूप मानता था । दूसरा मित्र संसार के भोगविलास को सुखरूप समझता था। पहला मित्र दूसरे को बार-बार समझाता था कि ससार में एक भी ऐसो वस्तु नही जो दु खरहित हो तब दूसरा मित्र पहले से कहता 'भाई साहब । संसार मे उत्तम भोजन-पान, नाचरग और स्त्रीभोग मे जैसा सुख है वैसा सुख और कही नहीं है।' इस प्रकार दोनो एक दूसरे की भूल बतलाया करते थे। अन्त में एक बार पहले मित्र ने कहा- इसका निर्णय करने के लिए मैं एक उपाय बतलाता है । आप राजा के पास जाओ और उनसे कहोमैं आपको अमुक भेंट देना चाहता हूँ। आप वह भेट लेकर दो घडी के लिए पाखाने मे बैठ जाइए।' क्या राजा तुम्हारी यह प्रार्थना स्वीकार करेगा? दूसरे मित्र ने कहा नही !' तब पहले मित्र ने प्रश्न किया 'राजा तुम्हारी प्रार्थना क्यों स्वीकार नही करेगा? क्या धन मे सुख नही है ?' दूसरे
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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