SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४-सम्यक्त्वपराक्रम (१) बहुत विस्तृत है । अतएव मलेप मे यही कह देना बस होगा कि भगवान् न केवलज्ञान प्रकट करने के पश्चात् जो उपदेश दिया वह जगत् के कल्याण के लिये है। उनक हृदय मे जीवो के प्रति एकान्त मप में महान भावय रुणा थी । भगवान् ने जगत् के जीवों को विविध प्रकार के दुखो मे सतप्त देवकर, उन पर करुणा लाकर उन्हें दुग्यो से छुटकारा दिलाने के लिये वाणी का उच्चारण किया । हृदय में जब करुणामाव जागृत होता है तो वह दूसरी का दुख दूर करने की प्रेरणा करता हो है। आम्रवृक्ष में जव मजरी आती है, तब कोयल किसी को रिझाने के लिए नहीं करती, परन्तु मजरी का भक्षण करने में उसके कठ मे जो सरलता आती है वही सरलता उसे ककने के लिए प्रेरित करती है । तब कोयल से कूके बिना रहा नहीं जाता। मेघ गर्जना होने पर मार बिना टहूके नहीं रह पाता । इसी प्रकार जब कंतयो में फूल आते है तो भ्रमर गुजारव किये विना नहीं रह सकते । प्रकृति के इरा नियम के अनुसार 'जब मनुप्य क हृदय में भार-करुणा उत्पन्न होती है तो वह मनुष्य का बालने के लिए प्ररित करती ही है । भगवान् महाबीर भी उसी भाबकरुणा से प्रेरित होकर धर्मदेशना देने में प्रवृत्त हुए थे । वह अपना पल्याण तो कर ही चुके थे श्रीर किगी जीव के प्रति उन्हे गग या मोह भी नहीं था, फिर भी गंमार के दुखी प्राणियो पर भावकरुणा करके उन्होंने वाणी उच्चारा थी । इस प्रकार यह निश्चित है कि हमारे काल्याण क लिए ही भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया था। भगवान की ऐसी पवित्रतम वाणी एक कान मे सुनकर दूसरे कान से निकाल देना विनने न यि की बात है ! अमर गुजार १ क हदयात के
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy