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________________ तीसरा बोल -: धर्मश्रद्धा :प्रश्न-धम्मसद्धाए णं भंते ! जीवे कि जणयह ! उत्तर-धम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ, श्रागारधम्मं च णं चयइ, अणगारिए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसजोगाईणं वोच्छेयं करेइ, अव्वाबाह च सुहनिव्वत्तेइ । शब्दार्थ प्रश्न-भगवन् धर्मश्रद्धा से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर-धर्मश्रद्धा से साता और सुख मे अनुराग करने वाला जीव उससे विरक्त हो जाता है, गृहस्थधर्म का त्याग करता है और अनगार बन जाता है । अनगार वना हुआ जीव शारीरिक और मानसिक तथा छेदन, भेदन, सयोग आदि दु:यो का नाश करता है और अव्यावाध सुख प्राप्त करता है। व्याख्यान उल्लिखित मूत्र में धर्मश्रद्धा के फल के विपय मे प्रश्न किया गया है । मगर धर्मश्रद्धा के फल पर विचार करने
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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