SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२-सम्यक्त्वपराक्रम (१) बहुत अच्छा हुआ जो दुर्योधन पकड कर बाँध लिया गया । इस दुष्ट ने जैसा किया वैसा फल पाया । दुर्योधन दुष्ट विचार करके ही आ रहा था और उसने पाण्डवों को कष्ट भी बहुत दिया था । फिर भी दुर्योधन के कैद होने के समाचार सुनते ही युधिष्ठिर, भीम अर्जुन आदि से कहने लगेभाइयो । दुर्योधन के पकडे जाने से तुम प्रसन्न होते हो और इसे बहुत अच्छा समझते हो, मगर यह बात हम लोगो को शोभा नहीं देती। हे अर्जुन अगर तुझे मुझ पर विश्वास है तो मैं जो कहता हू, उसी के अनुसार तू कर । अर्जुन बोले 'मुझे आपके ऊपर पूर्ण विश्वास है । अतएव आपका आदेश मुझे शिरोधार्य है । आप जो, कहेगे, वही करूँगा ।' तब युधिष्ठिर ने कहा-'जब कौरवो से अपना झगडा हो तो एक ओर सौ कौरव और दूसरी ओर हम पाँच पाण्डव रहे, मगर किसी तीसरे के साथ झगडा हो तो हम एक सौ पाँच साथ रहे । दुर्योधन कैसा ही क्यो न हो, आखिर तो अपना भाई ही है । हममे पुरुपार्थ होने पर भी कोई हमारे भाई को कैद कर रखे, यह कितना अनुचित है ? अतएव अगर तुममे पुरुषार्थ हो तो जाओ और दुर्योधन को गधर्व के बधन से मुक्त कर आओ। धर्मात्मा युधिष्ठिर ने विरासत मे भारतवर्ष को ऐसी हितवुद्धि की भेट दी है । मगर आजकल यह हितबुद्धि किस प्रकार भुला दी गई है और परिस्थिति कितनी विकट हो गई है, यह देखने की आवश्यकता है। कोई तीसरी शक्ति सवको दवा रही हो तो भले दवावे किन्तु हिन्दु-मुसलमान, जैन-वैष्णव अथवा जैन परस्पर मे शान्ति के साथ नही रह सकते । युधिष्ठिर कहते है-अपना भाई अपने ऊपर भले
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy