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________________ १६० - सम्यक्त्वपराक्रम (१) ( ३९ ) सहायपच्चक्खाणे (४०) भत्तपच्चक्खाणे ( ४१ ) सम्भापच्चक्खाणे (४२) पडिरूवणया (४३) वेयावच्चे (४४) सव्वगुणसपुण्णया (४५) वीयरागया (४६) खन्ती (४७) मुत्ती (४८) मद्देवे ( ४१ ) अज्जवे (५०), भावसच्चे (५१) करणसच्चे ( ५/२) जोगसच्चे (५३) मणगुत्तया (५४) वयत्तया (५५) कायगुत्तया (५६) मणसमाधारणया (५७) वयसमा धारणया (५८) कायसमाधारणया (५१) नाणसपन्नया ६०) दसणसपन्नया (६१) चरितसपन्नया (६२) सोइदियनिग्गहे (६३) चक्खि दिय निग्गहे (६४) घाणि दिय निग्गहे (६५) जिव्भि दिय निग्गहे (६६) फासिदिय निग्गहे (६७) कोह विजए (६८) माणविजए (६६) मायाविजए ( ७० ) लोहविजए (७१) पेज्जदोस मिच्छादसण विजए ( ७२ ) सेलेसी (७३) अकस्मयाः । इस सूत्रपाठ में भगवान् ने स्वयं सम्यक्त्वपराक्रम के संवेग से लेकर अकर्म तक ७३ बोल कहे है । इन ७३ बोलो मे सभी तत्त्वों का निष्कर्ष निकाला गया है । 2 उपर्युक्त सूत्रपाठ मे ७३ बोलो के नाम दिये गये है और आगे चलकर इनके विषय मे प्रश्नोत्तर के रूप मे स्फुट विचार किया गया है । यद्यपि इस सूत्रपाठ में पुनरुक्ति प्रतीत होती है परन्तु जैसे कोई माता अपने बालक को ठीक-ठीक समझाने के लिये पुनरुक्ति का विचार नही करती, उसी प्रकार शास्त्र मे भी बाल - जीवो को तत्त्वविचार समझाने के लिये पुनरुक्ति का विचार नही किया गया है और प्रत्येक बोल की प्रश्नोत्तर रूप में चर्चा की गई है ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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