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________________ ८६ -* सम्यग्दर्शन उस भूलते हुये हारको लक्षमें लेनेपर उसके पहिले से अन्ततकके सभी मोती उस हार में ही समाविष्ट हो जाते हैं और हार तथा मोतियोंका भेद लक्षमें नहीं आता । यद्यपि प्रत्येक मोती पृथक पृथक है किन्तु जब हारको देखते हैं तब एक २ मोतीका लक्ष छूट जाता है । परन्तु पहिले हारका स्वरूप जानना चाहिये कि हारमें अनेक मोती हैं और हार सफेद है, इसप्रकार पहिले हार, हारका रंग और मोती इन तीनोंका स्वरूप जाना हो तो उन तीनोंको भूलते हुये हारमें समाविष्ट करके हारको एकरूपसे लक्षमें लिया जा सकता है मोतियोंका जो लगातार तारतम्य है सो हार है । प्रत्येक मोती उस हारका विशेष है और उन विशेषों को यदि एक सामान्यमें संकलित किया जाय तो हार लक्ष आता है। हारकी तरह आत्माके द्रव्य गुण पर्यायोंको जानकर पश्चात् समस्त पर्यायोंको और गुणोंको एक चैतन्य द्रव्यमें ही अन्तर्गत करने पर द्रव्यका लक्ष होता है और उसी क्षण सम्यक्दर्शन प्रगट होकर मोहका क्षय हो जाता है । यहाॅ भूलता हुआ अथवा लटकता हुआ हार इसलिये लिया है कि वस्तु कूटस्थ नहीं है किन्तु प्रति समय भूल रही है अर्थात् प्रत्येक समयमै द्रव्यमें परिणमन हो रहा है। जैसे हारके लक्षसे मोतीका लक्ष छूट जाता है उसी प्रकार द्रव्यके लक्षसे पर्यायका लक्ष छूट जाता है । पर्यायोंमें बदलने वाला तो एक आत्मा है, बदलने वालेके लक्षसे समस्त परिणामोंको उसमें अंतर्गत किया जाता है । पर्यायकी दृष्टिसे प्रत्येक पर्याय भिन्न २ है किन्तु जब द्रव्यकी दृष्टि से देखते हैं तब समस्त पर्यायें उसमें अंतर्गत हो जाती है । इस प्रकार आत्म द्रव्यको ख्यालमें लेना ही सम्यग्दर्शन है । प्रथम आत्म द्रव्यके गुण और आत्माकी अनादि अनन्त कालकी पर्याय, इन तीनोंका वास्तविक स्वरूप ( अरिहतके स्वरूपके साथ सादृश्य करके) निश्चित् किया हो तो फिर उन द्रव्य, गुरण, पर्यायको एक परिणमित होते हुए द्रव्य में समाविष्ट करके द्रव्यको अभेद रूपसे लक्षमें लिया जा सकता है । पहिले सामान्य - विशेष ( द्रव्य - पर्याय ) को जानकर फिर
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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