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________________ ८२ --- सम्यग्दर्शन जो निर्णय कर लिया है उस निर्णय रूप ज्ञानमेंसे ही मोक्षमार्ग का प्रारम्भ होता है । मनके द्वारा विकल्पले ज्ञान किया है तथापि निर्णयके चलते ज्ञान में से विकल्पको अलग करके स्वलक्ष्यसे ठीक समझकर मोहका क्षय अवश्य करेगा - ऐसी शैली है । जिसने मनके द्वारा आत्माका निर्णय किया है उसकी सम्यक्त्वके सन्मुख दशा हो चुकी है । अरिहन्तके साथ समानता अब यह बतलाते हैं कि अरिहन्तको द्रव्य गुण पर्यायसे जाननेवाला जीव द्रव्य गुण पर्याय स्वरूप अपने आत्माको किस प्रकार जान लेता है। अरिहन्तको जाननेवाला जीव अपने ज्ञानमें अपने द्रव्य गुण पर्यायका इस प्रकार विचार करता है 'यह चेतन है ऐसा जो अन्वय सो द्रव्य है, अन्वयके आश्रित रहने वाला जो 'चैतन्य' विशेषण है सो गुण है और एक समयकी मर्यादायाला जिसका काल परिमाण होनेसे परस्पर अप्रवृत्त जो अन्य व्यतिरेक हैं [ एक दूसरे में प्रवृत्त न होने वाले जो अन्वयके व्यतिरेक हैं ] सो पर्याय है, जो कि चिद् विवर्तन की [ आत्माके परिणमनकी ]प्रन्थियां हैं । [ गाथा ८० की टीका ] पहिले अरिहन्त भगवानको सामान्यतया जानकर अब उनके स्वरूपको लक्ष्यमें रखकर द्रव्यगुण पर्यायसे विशेषरूपमें विचार करते हैं । "यह अरिहन्त आत्मा है" इसप्रकार द्रव्यको जान लिया । ज्ञानको धारण करने वाला जो सदा रहनेवाला द्रव्य है सो वही आत्मा है। इस अरिहन्त के साथ आत्माको सद्दश्यता बताई है। चेतन द्रव्य आत्मा है, आत्मा चैतन्य स्वरूप है चैतन्य गुण याम द्रव्यके आश्रित है, सदा स्थिर रहनेवाले आत्म द्रव्यके है, द्रव्यके श्राश्रयमं रहनेवाला होनेमे ज्ञान गुण है। देखकर यह निश्रय करना है कि स्वयं अपने आत्मा अरिहन्तका स्वभाव है वैसा ही मेरा स्वभाव है । भने ज्ञाना गु हैं
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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