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________________ -* सम्यग्दर्शन (अन्वयरूप ) होता है । जो एक अवस्था है वह दूसरी नहीं होती और जो दूसरी अवस्था है वह तीसरी नहीं होती, इसप्रकार अवस्थामें प्रथकृत्व है। किन्तु जो द्रव्य पहिले समयमें था वही दूसरे समयमें है और जो दूसरे समयमें था वही तीसरे समयमें है, इसप्रकार द्रव्यमें लगातार सादृश्य है। जैसे सोनेकी अवस्थाकी रचनाएं अनेक प्रकारकी होती हैं, उसमें अंगूठीके आकारके समय कुण्डल नहीं होता और कुण्डलरूप श्राकारके समय कड़ा नहीं होता, इसप्रकार प्रत्येक पर्यायके रूपमें प्रथक्त्व है, किन्तु जो सोना अंगूठीके रूपमें था वही सोना कुण्डलके रूपमें है और जो कुण्डलके रूपमें था वही कड़ेके रूपमें है सभी प्रकारोंमें सोना तो एक ही है, किस आकार प्रकारमें सोना नहीं है सभी अवस्थाओंके समय सोना है। इसीप्रकार अज्ञानदशाके समय साधक दशा नहीं होती, साधक दशाके समय साध्य दशा नहीं होती-इसप्रकार प्रत्येक पर्यायका प्रथकत्व है। किन्तु जो आत्मा अज्ञान दशामें था वही साधक दशामें है और जो साधक दशामें था वहीं साध्य दशामें है। सभी अवस्थाओंमें आत्म द्रव्य तो एक ही है। किस अवस्थामें आत्मा नहीं है ? सभी अवस्थाओंमें निरन्तर साथ रहकर गमन करने वाला आरम द्रव्य है। पहिले और पश्चात् जो स्थिर रहता है वह द्रव्य है। अरिहन्त भगवानका आत्मा स्वयं ही पहिले अज्ञान दशामें था और अब वही सम्पूर्ण ज्ञानमय अरिहन्त दशामें भी है। इसप्रकार अरिहन्तके आत्मद्रव्य को पहचानना चाहिये । यह पहचान करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि अभी अपूर्ण दशा होने पर भी मैं ही पूर्ण अरिहन्त दशामें भी स्थिर होऊंगा, इससे आत्माकी त्रैकालिकता लक्ष्यमें आती है। -गुण'अन्वयका जो विशेपण है सो गुण है' पहिले [ परिभाषा] की, अव गुणको परिभापा करते हैं। कड़ा, कुरडल और अंगूठी इत्यादि सभी अवस्थाओंमें रहनेवाला सोना द्रव्य है-यह तो कहा
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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