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________________ ६३ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला हन्तका आत्मा है, क्योंकि वह सर्व प्रकार शुद्ध है। अन्य आत्मा सर्व प्रकार शुद्ध नहीं है। द्रव्य, गुणकी अपेक्षासे सभी शुद्ध हैं कितु पर्यायसे शुद्ध नहीं है इसलिये उन आत्माओंको न लेकर अरिहन्तके ही आत्माको लिया है, उस शुद्ध स्वरूपको जो जानता है वह अपने आत्माको जानता है और उसका मोह क्षय हो जाता है। अर्थात् यहाँ आत्माके शुद्ध स्वरूपको जाननेकी ही बात है। आत्माके शुद्ध स्वरूपको जाननेके अतिरिक्त मोह क्षयका कोई दूसरा उपाय नहीं है। सिद्ध भगवानके भी पहले अरिहन्त दशा थी इसलिये अरिहंतके स्वरूपको जानने पर उनका स्वरूप भी ज्ञात हो जाता है । अरिहन्त दशा पूर्वक ही सिद्धदशा होती है। " द्रव्य, गुण तो सदा शुद्ध ही हैं किंतु पर्यायकी शुद्धि करनी है पर्यायकी शुद्धि करनेके लिये यह जान लेना चाहिये कि द्रव्य, गुण, पर्याय की शुद्धताका स्वरूप कैसा है ? अरिहन्त भगवानका आत्मा द्रव्य, गुण और पर्याय तीनों प्रकारसे शुद्ध है और अन्य आत्मा पर्यायकी अपेक्षासे पूर्ण शुद्ध नहीं है इसलिये अरिहन्तके स्वरूपको जाननेको कहा है। जिसने अरिहन्तके द्रव्य, गुण, पर्याय स्वरूपको यथार्थ जाना है उसे शुद्ध स्वभावकी प्रतीति हो गई है अर्थात् उसकी पर्याय शुद्ध होने लगी है और उसका दर्शनमोह नष्ट हो गया है। सोने में सौ टंच शुद्ध दशा होनेकी शक्ति है, जय अग्निके द्वारा ताव देकर उसकी ललाई दूर की जाती है तब वह शुद्ध होता है और इसप्रकार ताव दे देकर अंतिम ऑचसे वह संपूर्ण शुद्ध किया जाता है और यही सोनेका मूलस्वरूप है वह सोना अपने द्रव्य गुण पर्यायकी पूर्णताको प्राप्त हुआ है। इसीप्रकार अरिहन्तका आन्मा पहले अज्ञानदशामें था फिर आत्मज्ञान और स्थिरताके द्वारा क्रमशः शुद्धताको बढ़ाकर पूर्णदशा प्रगट की है। अब वे द्रव्यगुण पर्याय तीनोंसे पूर्ण शुद्ध हैं और अनंतकाल इसीप्रकार रहेंगे। उनके अज्ञानका, रागद्वेषका और भवका अभाव है इसीप्रकार
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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