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________________ ५६ * सम्यग्दर्शन अपने आत्माको ही वैसा जानता है और वह जीव क्षायिक सम्यक्त्वके ही मार्गपर आलढ़ है। हम अपूर्ण अथवा ढीली बात नहीं करते। पंचमकालके मुनिराजने यह बात कही है और पंचमकालके जीवों के लिये मोहक्षयका उपाय इसमें बताया है। सभी जीवोंके लिये एक ही उपाय है। पंचमकालके जीवोंके लिये कोई पृथक् उपाय नहीं है । जीव तो सभी कालमें परिपूर्ण ही है तव फिर उसे कौन रोक सकता है ? कोई नहीं रोकता । भरतक्षेत्र अथवा पंचमकाल कोई भी जीवको पुरुषार्थ करनेसे नहीं रोकता। कौन कहता है कि पंचमकालमें भरतक्षेत्रसे मुक्ति नहीं है। आज भी यदि कोई महाविदेह क्षेत्रमेंसे ध्यानस्थ मुनिको उठाकर यहाँ भरतक्षेत्रमें रख जाय तो पंचमकाल और भरतक्षेत्रके होनेपर भी वह मुनि पुरुषार्थके द्वारा क्षयक श्रेणीको मांडकर केवलज्ञान और मुक्तिको प्राप्त कर लेगा। इससे यह सिद्ध हुआ कि मोक्ष किसी काल अथवा क्षेत्रके द्वारा नहीं रुकता पंचमकालमें भरतक्षेत्र में जन्मा हुआ जीव उस भवसे मोक्षको प्राप्त नहीं होता, इसका कारण काल अथवा क्षेत्र नहीं है, किन्तु वह जीव स्वयं ही अपनी योग्यताके कारण मंद पुरुषार्थी है। इसलिये वाह्य निमित्त भी वैसे ही प्राप्त होते हैं। यदि जीव स्वयं तीव्र पुरुषार्थ करके मोक्षके प्राप्त करनेके लिये तैयार होजाय तो उसे बाह्यमें भी क्षेत्र इत्यादि अनुकूल निमित्त प्राप्त हो ही जाते है अर्थात् काल अथवा क्षेत्रकी ओर देखनेकी आवश्यकता नहीं रहती किन्तु पुरुषार्थकी भोर ही देखना पड़ता है। पुरुषार्थके अनुसार धर्म होता है। काल अथवा क्षेत्रके अनुसार धर्म नहीं होता। जो अरहतको जानता है वह अपने आत्माको जानता है अर्थात् जैसे द्रव्य गुण पर्याय स्वरूप अरहंत हैं उसी स्वरूप मैं हूँ। अरहंतके जितने द्रव्य गुण पर्याय है उतने ही द्रव्य गुण पर्याय मेरे हैं। अरिहंतकी पर्याय शक्ति परिपूर्ण है तो मेरी पर्याय की शक्ति भी परिपूर्ण ही है वर्तमानमें उस शक्तिको रोकनेवाला जो विकार है वह मेरा स्वरूप नहीं है।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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