SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प४ -* सम्यग्दर्शन अर्थात् मुक्ति होजाती है । इसप्रकार सम्यकज्ञानरूपी प्रज्ञा छैनी ही मोक्षका उपाय है। (५) ज्ञान ही मोक्षका साधन है त्रैकालिक ज्ञाता स्वभाव और और वर्तमान विकारके वीच सूक्ष्म अन्तर संधि जानकर आत्माकी और बंध की अन्तरसंधिको तोड़नेके लिये ही कहा है । आत्मा को वन्धन भावसे भिन्न करना न आये तो आत्माको क्या लाभ है ? जिसने आत्मा और वन्धके वीचके भेद को नहीं जाना वह अज्ञानके कारण वन्ध भावों को मोक्ष का कारण मानता है और वन्ध भावोंका आदर करके संसारको बढ़ाता रहता है इसलिये आचार्यदेव कहते है कि हे भव्य जीव ! एक प्रजारूपी छैनी हो मोक्षका साधन है । इस भगवती प्रज्ञाके अतिरिक्त अन्य कोई भी भाव मोक्षके साधन नहीं हैं। ध्यान करने पर पहले चैतन्यकी ओरका विकल्प उठता है वह निर्विकल्प ध्यानका साधन है-यह बात भी यथार्थ नहीं है। विकल्प तो बन्ध भाव है और निर्विकल्पता शुद्ध भाव है। पहले अनिहत वृत्तिसे (बिना भावना या विना इच्छाके ) विकल्प आते हैं किन्तु प्रज्ञा रूपी पैनी छैनी उस विकल्पको मोक्षमार्गके रूपमें स्वीकार नहीं करती, किन्तु उसे वन्ध मार्गके रूपमें जानकर छोड़ देती है। इस प्रकार विकल्पको छोड़कर ज्ञान रह जाता है । ऐसे विकल्पको भी जान लेने वाला ज्ञान ही मोक्षका साधन है परन्तु कोई विकल्प उस मोक्षका साधन नहीं है। जो शुभ विकल्पोंको मोक्षके साधनके रूपमें स्वीकार करते हैं उनके भगवती प्रज्ञा प्रगट नहीं हुई है इसीलिये वे बन्धभाव और मोक्षभावको भिन्न भिन्न नहीं पहचानते और वे अज्ञानके कारण बन्धभावको ही आत्माके रूपमें अंगीकार करके निरन्तर बद्ध होते रहते है। उधर ज्ञानीको आत्मा और वन्धभावका स्पष्ट भेदज्ञान होता है इसलिये मोक्षमार्गके वीचमें श्राने वाले वन्धभावोंको बन्धके रूपमें निःशंकतया जानकर उसे छोड़ते जाते है और जानमें एकाग्र हो जाते है इसलिये ज्ञानी प्रतिक्षण वन्धभावोंसे मुक्त होते हैं।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy