SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला २५१ रहित होकर उसकी प्रतीति करता है तब वह उपादेयरूप होता है, वह गगके द्वारा नहीं जाना जाता। कितनी भक्तिसे आत्मा समझमें आता है ? भक्तिसे आत्मा नहीं समझा जा सकता । कितने उपवासोंसे आत्मा समझ आयेगा ? उपवाससे शुभपरिणाभों से आत्मा समझमें नहीं आता। कोई भी शुभपरिणाम सम्यज्ञानकी रीति नहीं है, किन्तु जब स्वभावके लक्ष्यसे यथार्थ शास्त्रका अर्थ समझता है तब ज्ञानका व्यवहार सुधरता है पहले ज्ञानके आचरण सुधरे बिना चारित्रके आचरण नहीं सुधरते। यदि सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन की रीतिको ही नहीं जाने तो वह कहॉसे होगा ? अनेक जीव आचरणके परिणामोंको सुधार कर उसे ज्ञानका उपाय मानते हैं वे जीव सम्यग्ज्ञानके उपायको नहीं समझ है, व्यवहारका निषेध करके परमार्थ स्वभावको समझे बिना व्यवहारका भी सच्चा ज्ञान नही हो सकता। ___ कषायकी भन्दताके द्वारा जो मिथ्यात्वकी मन्दता होती है उसे व्यवहार सम्यग्दर्शन नहीं कहते। किंतु सच्ची समझकी ओरके प्रयत्नसे ही व्यवहार सम्यक्त्व होता है। किंतु यह व्यवहार-सम्यक्त्व भी निश्चय सम्यग्दर्शनका कारण नहीं है। यदि देव-गुरु-शास्त्रके लक्षमें ही रुक जाये तो सम्यग्दर्शन नहीं होगा। जिस समय चिन्मात्र स्वभावके श्राश्रयसे श्रद्धा ज्ञान करता है उस समय ही सम्यकश्रद्धा-ज्ञान प्रगट होता है। चैतन्य की श्रद्धा चैतन्यके द्वारा ही होती है-रागके द्वारा या परके द्वारा नहीं होती। - बाह्य क्रियाओंके आश्रयसे कषायकी मन्दता नहीं होती। और कषायकी मन्दतासे पर्यायकी स्वतंत्रताकी श्रद्धा नहीं होती। द्यादिके परिणामोंका पुरुषार्थ तो करते हैं, किंतु वर्तमान पर्याय स्वतंत्र है ऐसी व्यवहारश्रद्धाका उपाय उससे भिन्न प्रकारका है। पर-जीवके कारण या पर द्रव्योंके कारण मेरे दयादिरूप परिणाम हुए है, अथवा कर्मके कारण रागादि हुए-ऐसी मान्यतापूर्वक कषायकी मन्दता करे किन्तु उस मन्दकषायमें व्यवहार-श्रद्धा करनेकी शक्ति नहीं है, तो फिर उससे सम्यग्दर्शन तो हो ही कैसे सकता है।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy