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________________ २३८ -* सम्यग्दर्शन ज्ञान करे तो सुख हो, परन्तु जीव अपने ज्ञानस्वभावको नहीं पहचानता और ज्ञानसे भिन्न अन्य वस्तुओंमें सुखकी कल्पना करता है, यह उसके ज्ञानकी भूल है और उस भूलके कारण ही जीवके दुःख है। अज्ञान नीव की अशुद्ध पर्याय है। जीवको अशुद्ध पर्याय दुख रूप है इसलिये उस दशाको दूर करके सच्चे ज्ञानके द्वारा शुद्ध दशा प्रगट करनेका उपाय समझाया जाता है। सभी जीव सुख चाहते हैं और सुख जीवकी शुद्ध दशामें ही है इसलिये जिन छह द्रव्योंको जाना है उनमेंसे जीवके अतिरिक्त पॉचद्रव्योंके गुण पर्यायके साथ जीवका कोई प्रयोजन नहीं है, किन्तु अपने गुण पर्यायके साथ ही प्रयोजन है। प्रत्येक जीव अपने लिये सुख चाहता है अर्थात् अशुद्धताको दूर करना चाहता है जो मात्र शास्त्रोंको पढ़कर अपनेको ज्ञानी मानता है वह ज्ञानी नहीं है किन्तु जो द्रव्योंसे भिन्न अपने आत्माको पुण्य-पापकी क्षणिक अशुद्ध वृत्तियोंसे भिन्न रूपमें यथार्थतया जानता है वही ज्ञानी है। कोई परवस्तु आत्माको हानि लाभ नहीं पहुंचाती। अपनी अवस्थामें अपने ज्ञानकी भूलसे ही दुखी था। अपने स्वभावकी समझके द्वारा उस भूलको स्वयं दूर करे तो दुख दूर होकर सुख होता है। जो यथार्थ समझके द्वारा भूलको दूर करता है वह सम्यग्दृष्टि ज्ञानी, सुखी धर्मात्मा है, जो यथार्थ समझके बाद उस समझके बलसे आंशिक रागको दूर करके स्वरूपकी एकाप्रताको क्रमशः साधता है वह श्रावक है। जो विशेष रागको दूर करके, सर्व संगका परित्याग करके स्वरूपकी रमणतामे बारम्बार लीन होता है वह मुनि-साधु है और जो सम्पूर्ण स्वरूपकी स्थिरता करके, सम्पूर्ण राग को दूर करके शुद्ध दशाको प्रगट करते है वे सर्वज्ञदेव-केवली भगवान हैं। उनमें से जो शरीर सहित दशामें विद्यमान हैं वे अरहन्तदेव हैं जो शरीर । रहित है वे सिद्ध भगवान हैं। अरहन्त भगवानने दिव्यध्वनिमें जो वस्तु स्वरूप दिखाया है उसे 'श्रुत' (शास्त्र ) कहते हैं। इनमेंमे अरिहन्त और सिद्ध देव हैं, साधक, संत मुनि गुरु हैं और
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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