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________________ b -* सम्यग्दर्शन - हैं तथापि दोनों भिन्न हैं । जीवका ज्ञाता स्वभाव है ! और पुद्गल निर्मित यह शरीर कुछ भी नहीं जानता । यदि शरीरका कोई अंग कट जाय तथापि जीवका ज्ञान नहीं कट जाता, जीव तो सम्पूर्ण बना रहता है क्योंकि नीव और शरीर सदा भिन्न हैं। दोनोंका स्वरूप भिन्न है और दोनोंका प्रथक् कार्य है । यह नीव और पुद्गल स्पष्ट हैं । जीव और शरीर कहाँ रहते हैं ? वे अमुक स्थान पर दो चार या छह फुटके स्थान में रहते हैं, इसप्रकार स्थान अथवा जगहके कहने पर 'आकाश द्रव्य' सिद्ध हो जाता है । t यह ध्यान रखना चाहिये कि जहाँ यह कहा जाता है कि जीव और शरीर आकाशमें रह रहे हैं वहाँ वास्तवमें जीव, शरीर और आकाश तीनों स्वतंत्र पृथक् २ हैं, कोई एक दूसरेके स्वरूपमें घुस नहीं जाता । जीव तो ज्ञाता स्वरूपमें ही विद्यमान है । रूप, रस, गंध इत्यादि शरीरमें ही है, वे आकाश अथवा जीव इत्यादि किसीमें भी नहीं हैं। आकाशमें न तो रूप, रस इत्यादि हैं और न ज्ञान ही है, वह अरूपी - अचेतन है । जीवमें ज्ञान है किन्तु रूप, रस, गंध इत्यादि नहीं हैं अर्थात् वह अरूपी-चेतन है, द्रूप, रस, गंध इत्यादि हैं किन्तु ज्ञान नहीं है, अर्थात् वह रूपीअचेतन है । इसप्रकार तीनों द्रव्यं एक 'दूसरे से भिन्न - स्वतंत्र हैं । कोई अन्य वस्तु स्वतंत्र वस्तुओंका कुछ नहीं कर सकती यदि एक वस्तु में दूसरी वस्तु कुछ करती हो तो वस्तु को स्वतंत्र कैसे कहा जायगा ? नीव दोनों की इसप्रकार जीव पुद्गल और आकाशका निश्चय करके काल द्रव्यका निश्चय करते हैं । प्रायः ऐसा पूछा जाता है कि "आपकी आयु कितनी है" ? ( यहाँ पर 'आपकी' से मतलब शरीर और आयु की बात समझनी चाहिये ) शरीर की आयु ४०, जाती है और जीव अस्ति रूपसे अनादि अनन्त है । जहाँ यह कहा जाता है कि - 'यह मुझसे पाँच वर्ष छोटा है या पॉच वर्ष बड़ा है' वहॉ शरीरके कदकी अपेक्षासे छोटा बड़ा नहीं होता किन्तु कालकी अपेक्षा मे ५० वर्षकी कही
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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