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________________ २०६ -* सम्यग्दर्शन विज्ञान ने कहा है, इसलिये वह त्रिकाल सत्य ही है, अन्य कोई कथन सत्य नहीं है। - जन्मके बाद अनेक प्रकारकी नई विपरीत मान्यताएँ ग्रहण की, उसीको गृहीत मिथ्यात्व भी कहते हैं। उसे लोकमूढ़ता, देवमूढता और गुरुमूढता भी कहा जाता है। लोकमूढ़ता-पूर्वजों ने अथवा कुटुम्बके बड़े लोगों ने किया या जगत्के अग्रगण्य बड़े लोगोंने किया इसलिये मुझे भी वैसा करना चाहिये और स्वयं विचार शक्तिसे यह निश्चय नहीं किया कि सत्य क्या है । इसप्रकार अपने को जो मन-विचार करनेकी शक्ति प्राप्त हुई है उसका सदुपयोग न करके दुरुपयोग ही किया और जिसके फलस्वरूप उसकी विचार शक्तिका मरण हुये बिना नहीं रहता । मन्द कषाय के फल स्वरूप विचार शक्ति प्राप्त कर लेने पर भी उसका सदुपयोग न करके अनादिकालीन अगृहीत मिथ्यात्वके साथ नया भ्रम उत्पन्न कर लिया और उसे पुष्ट किया उसके फलस्वरूप जीवको ऐसी हलकी दशा प्राप्त होती है जहाँ विचार शक्तिका अभाव है। अपनी विचार शक्तिको गिरवी रखकर सैनी जीव भी धर्मके नाम पर इस प्रकार अनेक तरहकी विपरीत मान्यताओंको पुष्ट किया करते हैं कि यदि हमारे वाप दादा कुदेवको मानते हैं तो हम भी उन्हें ही मानेंगे । इसप्रकार अपनी मनकी शक्तिका घात करके स्वयं अपने लिये निगोदकी तैयारी करते हैं जैसे निगोदिया जीवको विचार शक्ति नहीं होती, उसी प्रकार गृहीत मिथ्यात्वी जीव अपनी विचार शक्तिका दुरुपयोग करके उसका घात करता है और उस निगोद की तैयारी करता है जहाँ विचार शक्तिका सर्वथा अभाव है। देवमृद्रता:-सच्चे धर्मको समझाने वाला कौन हो सकता है ऐसी विचार शक्ति होने पर भी उसका निर्णय नहीं किया। निजको विपरीत ज्ञान है इसलिये जिसे यथार्थ पूर्णनान हुमायेने दिव्य शक्ति वाले सर्वज देवके पाससे सचा लान प्राप्त हो सकता है, किंतु
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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