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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला निरन्तर समयमे महान पापका कारण है। हिंसा, चोरी, झूठ, शिकार आदि सात व्यसनोंके पापोंसे भी बढ़कर अनन्त गुना महापाप यह दृष्टि है। (७) द्रव्यदृष्टि ही परम कर्तव्य है । अनादिकाल से चले आये इन महान दुःखोंका नाश करनेके लिये उनके मूलभूत बीजको यानी मिथ्यात्वको आत्मस्वरूपकी पहिचानरूप सम्यकत्व के द्वारा नाश करना यही जोव (आत्मा) का परम कर्तव्य है। अनादि संसारमें परिभ्रमण करते हुये इस जीवने दया, दान, व्रत, तप, भक्ति, पूजा आदि सर्व शुभकृत्य अपनी मान्यता के अनुसार अनन्तबार किए है और पुण्य करके अनन्तबार स्वर्ग का देव हुआ है, तो भी संसार परिभ्रमण टला नह , इसका मात्र कारण यही है कि जीवने अपने आत्मस्वरूप को जाना नहीं, मची दृष्टि प्राप्त की नहीं। और सच्ची दृष्टि किए विना भवका अंत नहीं आ सकता। इसलिये आत्मकल्याणार्थ द्रव्य दृष्टि प्रान कर सम्यग्दर्शन प्रगटाना यही सब जीवोंका कर्तव्य है। और इस कर्तव्य को स्वलक्षी पुरुपार्थ द्वारा प्रत्येक जीव कर सकता है। इस मम्यग्दर्शन की प्राप्ति से जीवका अवश्यमेव मोक्ष होता है। ५. सम्यक्त्वकी प्रतिज्ञा (श्रीमद् राज.चन्द्र) "मुझे ग्रहण करनेसे, ग्रहण करनेवाले की इच्छा न होो पर भी मुझे उसको वलात् मोक्ष ले जाना पड़ता है, इसलिये मुझे ग्रहण करनेसे पहले यदि वह विचार करे कि मोक्ष जाने की इच्छा को बदल देंगे तो भी उससे काम नहीं चलेगा। मुझे ग्रहण करने के बाद, मुझे उसे मोक्ष पहुंचाना ही चाहिये। कदाचित् मुझे ग्रहण करनेवाला शिथिल हो जाय तो भी यदि हो सका तो उसी भवमें अन्यथा अधिकसे अधिक पंद्रह भवमें मुझे उसे मोक्ष पहुँचा देना चाहिये। कदाचित् वह मुझे.छोड़कर मुझसे विरुद्ध आचरण करे अथवा
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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