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________________ ૪૮ --* सम्यग्दर्शन है सो मैं नहीं हूं' तव वह सम्यक् हुआ। सम्यकज्ञान सम्यग्दर्शनरूप प्रगट पर्यायको और सम्यग्दर्शनकी विषयभूत परिपूर्ण वस्तुको तथा अवस्थाकी कमीको तदवस्थ जानता है, ज्ञानमें अवस्थाकी स्वीकृति है । इसप्रकार सम्यग्दर्शन तो एक निश्चयको ही (अभेद स्वरूप को ही) त्वीकार करता है और सम्यग्दर्शनका अविनाभावी ( साथ ही रहने वाला) सम्यग्ज्ञान निश्चय और व्यवहार दोनोंको बराबर जानकर विवेक करता है। यदि निश्चय व्यवहार दोनोंको न जाने तो ज्ञान प्रमाण ( सम्यक् ) नहीं हो सकता । यदि व्यवहारको लक्ष्य करे तो दृष्टि खोटी (विपरीत ) ठहरती है और जो व्यवहारको जाने ही नहीं तो ज्ञान मिथ्या ठहरता है। ज्ञान निश्चय व्यवहारका विवेक करता है इसलिये वह सम्यक है (समीचीन है) और दृष्टि व्यवः हारके लक्ष्यको छोड़कर निश्चयको स्वीकार करे तो सम्यक् है । सम्यग्दर्शनका विषय क्या है ? और मोक्षका परमार्थ कारण कौन है ? ____ सम्यग्दर्शनके विषयमें मोक्षपर्याय और द्रव्यसे भेद ही नहीं है, द्रव्य ही परिपूर्ण है वह सम्यग्दर्शनको मान्य है। वन्ध मोक्ष भी सम्यग्दर्शन को मान्य नहीं बन्ध-मोक्षकी पर्याय, साधकदशाका भंगभेद इन सभीको सम्यग्ज्ञान जानता है। ___ सम्यग्दर्शनका विषय परिपूर्ण द्रव्य है, वही मोक्षका परमार्थ कारण है। पंच महाव्रतादिको अथवा विकल्पको मोक्षका कारण कहना सो स्थूल व्यवहार है और सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप साधक अवस्थाको मोक्षका कारण कहना सो भी व्यवहार है क्योंकि उस साधक अवस्याका भी जब अभाव होता है तव मोक्ष दशा प्रगट होती है। अर्थात् वह अभावरूप कारण है इसलिये व्यवहार है। विकाल अखंड वस्तु ही निश्चय मोक्षका कारण है किन्तु परमार्यतः तो वस्तुमें कारण कार्यका भेद भी नहीं है, कार्य कारणका भेद भी व्यवहार है। एक अखंड वस्तुमें कार्य कारणके भेदक विचारसे विकल्प होता है इसलिये वह भी व्यवहार है । तथापि व्यवहारसे भी कार्य पारण
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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