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________________ १२० - सम्यग्दर्शन वे कौन हैं ? वे क्या कहते हैं ? उनने पहले क्या किया था ? इसका अपने ज्ञानमें निर्णय करना होगा अर्थात् सर्वज्ञके स्वरूपको जानकर उनके द्वारा कहे गये श्रुतज्ञानके अवलंबनसे अपने आत्माका निर्णय करना चाहिये, यही प्रथम कर्त्तव्य है । किसी परके अवलंबन से धर्म प्रगट नहीं होता तथापि जब स्वयं अपने पुरुषार्थ से समझता है तव सामने निमित्त के रूपमें सच्चे देव और गुरु ही होते हैं । इसप्रकार पहला निर्णय यही हुआ कि कोई पूर्ण पुरुष सम्पूर्ण सुखी है और सम्पूर्ण ज्ञाता है वही पुरुष पूर्णसुखका पूर्ण सत्यमार्ग कह सकता है । इसे स्वयं समझकर अपने पूर्ण सुखको प्रगट किया जा सकता है और जब स्वयं समझता है तब सच्चे देव शास्त्र गुरु ही निमित्त होते हैं । जिसे स्त्री पुत्र पैसा इत्यादिकी अर्थात् संसारके निमित्तोंकी तीव्र रुचि होगी उले धर्मके निमित्तों-देव, शास्त्र, गुरुके प्रति रुचि नहीं होगी अर्थात् उसके श्रुतज्ञानका अवलंबन नहीं होगा और श्रुतज्ञानके अवलंबनके बिना आना का निर्णय नहीं होता क्योंकि आत्माके निर्णय में सत् निमित्त ही होते है परन्तु कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र आत्मा के निर्णय में निमित्तरूप नहीं हो सकते । जो कुवादिको मानता है उसके आत्म निर्णय हो ही नहीं सकता । जिज्ञासु यह तो मानता ही नहीं है कि दूसरेकी सेवा करनेसे धर्म होता है किन्तु वह यथार्थ धर्म कैसे होता है इसके लिये पहले पूर्ण ज्ञानी भगवान और उनके द्वारा कहे गये शास्त्रके अवलंबनसे ज्ञान स्वभाव आत्माका निर्णय करनेके लिये उद्यमी होता है । जगत् धर्मकी कलाको ही नहीं समझ पाया यदि धर्मकी एक ही कलाको सीख ले तो उसे मोक्ष हुये बिना न रहे । जिज्ञासु-जीव पहले सुदेवादिका और कुदेवादिका निर्णय करके कुदेवादिको छोड़ता है और उसे सच्चे देव, गुरुकी ऐसी लगन लगी है कि उसका यही समझतेकी ओर लक्ष्य है कि सत् पुरुष क्या कहते हैं। इसलिये अशुभसे तो वह ईंट ही गया है । यदि सांसारिक रुचिसे अलग न
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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