SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ -* सम्यग्दर्शन (१८) सबमें बड़ेमें बड़ा पाप, सबमें बड़ेमें बड़ा पुण्य और सबमें पहले में पहला धर्म । प्रश्न-जगतमें सबसे बड़ा पाप कौनसा है ? उत्तर - मिथ्यात्व ही सबसे बड़ा पाप है 1 प्रश्न - सबसे बड़ा पुण्य कौनसा है ? उत्तर- तीर्थकर नामकर्म सबसे बड़ा पुण्य है । यह पुण्य सम्यग्दर्शनके वादकी भूमिकामें शुभरागके द्वारा बँधता है । मिथ्यादृष्टिको यह पुण्य लाभ नहीं होता । प्रश्न - सर्वप्रथम धर्म कौनसा है ? उत्तर --- सम्यग्दर्शन ही सर्व प्रथम धर्म है । सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान चारित्र तप इत्यादि कोई भी धर्म सम्चा नहीं होता । यह सब धर्म सम्यग्दर्शन होनेके बाद ही होते हैं, इसलिये सम्यग्दर्शन ही सर्वधर्मका मूल है । प्रश्न -- मिथ्यात्व को सबसे बड़ा पाप क्यों कहा है ? उत्तर—मिथ्यात्वका अर्थ है विपरीत मान्यता; अयथार्थ समझ । जो यह मानता है कि जीव परका कुछ कर सकता है और पुरीयसे धर्म होता है उसकी उस विपरीत मान्यतामें प्रतिक्षण अनंत पाप आते वह कैसे ? सो कहते हैं: I - जो यह मानता है कि 'पुण्यसे धर्म होता है और जीव दूसरेका कुछ कर सकता है' वह यह मानता कि 'पुण्यसे धर्म नहीं होता और जीव परका कुछ नहीं कर सकता- ऐसे कहने वाले झूठे हैं' और इसलिये 'पुण्य से धर्म नहीं होता और जीव परका कुछ नहीं कर सकता' ऐसा कहने वाले
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy