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________________ पथ और पाथेय। भापका बल ही बढ़ाते रहते हैं। जब पूछा जाता है कि रास्ता साफ करने और पटरियाँ बिछानेका काम कौन करेगा, तब हमारा जवाब होता है-इन फुटकर कामोंको लेकर दिमाग खराब करना फजूल हैसमय आनेपर सब कुछ अपने आप ही हो जायगा। मजदूरका काम मजदूर ही करेगा; हम जब ड्राइवर हैं तब इंजिनमें स्टीम ही बढ़ाते रहना हमारा कर्तव्य है। अब तक जो लोग सहिष्णुता रख सके हैं, संभव है कि वे हमसे पूछ बैठे कि-"तब क्या बंगालक सर्वसाधारण लोगोंमें जो उत्तेजनाका उद्रेक हुआ है, उससे किसी भी अच्छे फलकी आशा नहीं की जा सकती ?" नहीं, हम ऐसा कभी नहीं समझते । अचेतन शक्तिको सचेष्ट या सचेतन करनेके लिये इस उत्तेजनाकी आवश्यकता थी। पर जगा कर उठा देनेके अनन्तर और क्या कर्त्तव्य है ! कार्यमें नियुक्त करना या शराबमें मस्त करके मतवाला कर देना ? शराबकी जितनी मात्रा क्षीण प्राणको कार्यक्षम बनाती है उससे अधिक मात्रा फिर उसकी कार्यक्षमता नष्ट कर देती है। सत्य कर्ममें जिस धैर्य और अध्यवसायका प्रयोजन होता है मतवालेकी शक्ति और रुचि उससे विमुख हो जाती है। धीरे धीरे उत्तेजना ही उसका लक्ष्य हो जाती है और वह विवश होकर कार्यके नामपर ऐसे अकार्योंकी सृष्टि करने लगता है जो उसकी मत्तताहीकी अनुकूलता करते हैं। इस सारे उत्पात कर्मको वस्तुतः वह मादकता बढ़ानेका निमित्त समझकर ही करता है और इनके द्वारा उत्तेजनाकी मात्राको घटने नहीं देता। मनोवेग जब काथ्र्यों में मार्गसे बाहर निकलनेका रास्ता नहीं पाता, और भीतर ही भीतर सञ्चित और बर्द्धित होता रहता है तब वह विषका काम करता है,
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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