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________________ पथ और पाथेय। अतः यह बात सर्वथा सत्य है कि स्वदेश या विदेशके किसी ज्ञानी पुरुषने दावेके साथ यह भविष्यद्वाणी नहीं की थी कि बंगालके मनमें दबी हुई चिनगारी क्रमशः ऐसी प्रचण्ड अग्निके रूपमें प्रज्वलित होगी। ऐसी दशामें हमारे इस अकस्मात् बुद्धिविकासके कालमें जिनके विचारों और कार्योको हम पसन्द न करते हों उनको असावधानताका दोषी ठहराते फिरना अच्छी बात नहीं है। मैं भी इस गड़बड़ीके समय किसी पक्षके विरुद्ध कोई बात नहीं कहना चाहता । पर किस प्रकार क्या हुआ और उसका क्या फलाफल होगा, इसका निरपेक्ष भावसे विवेचन करके हमें अपना मार्ग निश्चित करनाही होगा। ऐसी चेया करते समय यदि हमारा मत किसी एक अथवा कतिपय सजनोंके मतसे भिन्न जान पड़े तो वे दया करके इस वातका विश्वास रक्खें कि हमारी बुद्धि कमजोर हो सकती है, हमारी दृष्टिमें दुर्बलता होना सम्भव है; परन्तु यह कदापि सम्भव नहीं है कि स्वदेशके हितके विषयमें उदासीनता या हितैपियोंके प्रति बुरे भाव होनेके कारण हम जान-बूझकर विचारनेमें भूल करें। अतएव हमारे विचारोंको आप भले ही स्वीकार न करें, पर हमारे मतोंके प्रति श्रद्धा और उनके सुन लेनेका धैर्य आप अवश्य रक्खें। कुछ दिनोंसे बंगालमें जो कुछ हो रहा है, हममेंसे कौन कौन बंगाली उसके संघटनमें कितने कारणीभूत हैं, इसकी सूक्ष्म विवेचना न करके भी यह बात निश्चयके साथ कही जा सकती है कि तन, मन या वाणी से किसी एक न एकके द्वारा हममेंसे प्रत्येकने उसका पोषण किया है । अतएव जो चित्तदाह परिमित स्वभावमें ही बद्ध नहीं रहा है, प्रकृतिभेदके अनुसार जिसकी उत्तेजना हम सभीने थोड़ी बहुत अनुभूत और प्रकाशित की है, यदि उसीका कोई केन्द्रक्षिप्त
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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