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________________ राजा और प्रजा । ११२ वर्णों, भिन्न भिन्न चित्रों और भिन्न भिन्न अक्षरोंमें देश-विदेशों में किस प्रकार अपनी घोषणा करती हैं। अब हम लोग भी निर्लज्ज होकर और उन्हीं में मिलकर इस प्रकारकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ! विलायत में जिस प्रकार राजनीतिक क्षेत्रमें झूठे बजट तैयार किए जाते हैं, प्रश्नोंके जिस प्रकार चतुराईसे गढ़े हुए और दूसरोंको धोखेमें डालनेवाले उत्तर दिए जाते हैं और अभियोग चलाकर एक पक्षपर दूसरे पक्षवाले जो सब दोषारोपण करते हैं, वे सब यदि मिथ्या हों तब तो लज्जाका विषय है और यदि वे मिथ्या न हों तो इसमें सन्देह नहीं कि वे शंकाजनक अवश्य हैं । वहाँकी पार्लिमेन्टसंगत भाषा में और कभी कभी उसका उल्लंघन करके भी बड़े बड़े लोगोंको झूठा, धोखेबाज और सच्ची बातको छिपानेवाला कह दिया जाता है । या तो इस निन्दावादको अत्युक्तिपरायणता कहना होगा और नहीं तो यह कहना पड़ेगा कि इंग्लैण्डकी राजनीति झूटसे बिलकुल जीर्ण है । जो हो, इस आलोचनासे यह बात मनमें आती है कि अत्युक्तिको स्पष्ट अत्युक्ति के रूपमें रखना ही अच्छा है। उसे कौशल से काट-छाँटकर वास्तव दलमें मिलानेकी चेष्टा करना अच्छा नहीं है—उसमें बहुत अधिक विपत्तियाँ हैं ।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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