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________________ राजा और प्रजा। १०४ इसीलिये कहते हैं कि आगामी दिल्ली दरबार पाश्चात्य अत्युक्ति और वह भी झूठी वा दिखौआ अत्युक्ति है। इधर तो हिसाब किताब और दूकानदारी है और उधर बिना प्राच्य सम्राटोंकी नकल किए काम नहीं चलता । हम लोग देशव्यापी अनशनके दिनोंमें इस अमूलक दरबारका आडम्बर देखकर डर गए थे, इसीलिये हमारे शासकोंने हमें आश्वासन देते हुए कहा था कि इसमें व्यय बहुत अधिक नहीं होगा और जो कुछ होगा भी उसका प्रायः आधा वसूल कर लिया जा सकेगा । लेकिन जिन दिनोंमें बहुत समझ-बूझकर रुपया खर्च करना पड़ता है उन दिनोंमें भी बिना उत्सव किए काम नहीं चलता। जिन दिनों खजानेमें रुपया कम होता है उन दिनों यदि उत्सव करनेकी आवश्यकता हो तो अपना खर्च बचानेकी ओर दृष्टि रखकर दूसरोंके खर्चकी ओरसे उदासीन रहना पड़ता है। इसीलिये चाहे आगामी दिल्ली दरबारके समय सम्राटके प्रतिनिधि थोड़े ही खर्चमें काम चला लें, लेकिन फिर भी आडम्बरको बहुत बढ़ानेके लिये वे राजा महाराजाओंका अधिक खर्च करावेंगे ही। प्रत्येक राजा महाराजाको कुछ हाथी, कुछ घोड़े और कुछ आदमी अपने साथ लाने ही पड़ेंगे। सुनते हैं कि इस सम्बन्धमें कुछ आज्ञा भी निकली है । उन्हीं सब राजा महाराजाओंके हाथी-घोड़ों और लाव-लश्करसे, यथासंभव थोड़ा खर्च करनेमें चतुर सम्राटके प्रतिनिधि जैसे तैसे इस बड़े कामको चला ले जायेंगे। इससे चतुरता और प्रतापका परिचय मिलता है। लेकिन प्राच्य सम्प्रदायके अनुसार जो उदारता और वदान्यता राजकीय उत्सवका प्राण समझी जाती है वह इसमें नहीं है। एक आँख रुपयेकी थैलीकी ओर और दूसरी आँख पुराने वादशाहोंके अनुकरण-कार्यकी ओर रखनेसे यह काम नहीं चल सकता। जो व्यक्ति यह काम स्वभावतः ही
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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