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________________ राजा और प्रजा। प्रति हमने जितने उपद्रव किए हैं उन सबको उसने अपनी प्रकाण्ड शक्तिसे चुपचाप और अनायास ही सह लिया है। किन्तु एक दिन नई वाके दुर्योगमें मंघावृत्त दोपहरको हम लोगोंकी वही चिर-निर्भर भूमि अचानक न जाने किस गूढ आशंकासे काँपने लगी। हमने देखा कि उसकी उस क्षण भरकी चंचलताके कारण हम लोगोंके बहुत दिनोंके प्रिय और पुराने वासस्थान मिट्टीमें मिल गए। ___ यदि सरकारकी अचला नीति भी अचानक साधारण अथवा अनिदेश्य आतंकसे विचलित और विदीर्ण होकर हम लोगोंको खानेके लिये तैयार हो जाय, तो उसकी शक्ति और नीतिकी दृढताके सम्बन्धमें हम लोगोंका बहुत दिनोंसे जो विश्वास चला आता है सहसा उस विश्वासपर बड़ा भारी धक्का लगता है। उस धकेसे प्रजाके मनमें भयका संचार होना सम्भव है लेकिन उसके साथ ही यह बात भी बहुत स्वाभाविक है कि सरकारको स्वयं अपने लिये भी अचानक बहुत कुछ सोच विचार करना पड़े। यह प्रश्न सहसा आप ही आप मनमें उठता है कि हम न जाने क्या हैं ! इमसे हम लोगोंकी थोड़ी बहुत तसल्ली होती है। क्योंकि जो जाति पूरी तरहसे निस्तेज और निःसत्व हो गई हो, उसके प्रति बलका प्रयोग करना जिस प्रकार अनावश्यक है उसी प्रकार उसके प्रति श्रद्धा करना भी असम्भव है । जब हम लोग यह देखते हैं कि हमें दमन करनेके लिये विशेष प्रयत्न हो रहा है तब न्याय और अन्याय, विचार और अविचारका तर्क दूर हो जाता है और हमारे मनमें स्वभावतः यह बात आती है कि शायद हम लोगोंमें किसी शक्तिकी संभावना है और केवल मूढताके कारण हम सब अवसरोंपर उस शक्तिको काममें नहीं ला सकते । ऐसी दशामें जब कि सरकार चारों तरफ तोपें लगा
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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