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________________ ६१ अपमानका प्रतिकार । तर्कके सामने परिचित सत्य घटनाका सूत्र भी हम खा बैठते हैं। इसी लिये हम लोगोंके गवाहोंके सच और झूठका सूक्ष्मरूपसे निर्धारण करना विदेशी विचारकोंके लिये सदा ही कठिन होता है । और तिसपर अभियुक्त जब उन्हींके देशका होता है तब यह कठिनता सौगुनी बल्कि हजार गुनी हो जाती है। और फिर विशेषतः जब स्वभावसे ही अँगरेजोंके सामने कम पहननेवाले, कम खानेवाले, कम प्रतिष्ठावाले और कम बलवाले भारतवासीके 'प्राणकी पवित्रता' उनके देशभाइयोंके मुकाबलेमें बहुत ही कम और परिमित होती है तब भारतवासियोंके लिये यथोचित प्रमाण संग्रह करना एक प्रकारसे बिलकुल असंभव हो जाता है । इस तरह एक तो हम लोगोंके गवाह ही दुर्बल होते हैं और फिर हमारे तिल्ली आदि शरीर-यंत्र बहुत कुछ त्रुटिपूर्ण बतलाये जाते हैं, इस लिये हम लोग बहुत ही सहजमें मर भी जाते हैं और इस संबंधमें न्यायालयसे उचित विचार कराना भी हम लोगोंके लिये दुस्साध्य होता है। लजा और दुःखके साथ हमें इन सब दुर्बलताओंको स्वीकृत करना पड़ता है, लेकिन उसके साथ ही साथ इस सत्य बातको भी प्रकाशित कर देना उचित जान पडता है कि इस प्रकारकी घटनाओंके लगातार होनेके कारण इस देशके लोगोंका चित्त बहुत अधिक क्षुब्ध होता जाता है। साधारण लोग कानून और प्रमाणोंका सूक्ष्म विचार नहीं कर सकते। यह बात बार बार और बहुत ही थोडे थोड़े समयपर देखनेमें आती है कि भारतवासीकी हत्या करनेपर कभी किसी अँगरेजको प्राणदण्ड नहीं दिया जाता और इस बातको देखते तथा समझते हुए भारतवासियोंके मनमें अँगरेजोंकी निष्पक्ष न्यायपरताके सम्बन्धमें बहुत बड़ा सन्देह उत्पन्न होता है ।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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