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________________ ___४३ अँगरेज और भारतवासी। आकृष्ट करनेके प्रबल मोहसे अपनी रक्षा करके, मनोयोगपूर्वक अविचलित चित्तसे चरित्रबलका संचय करने लगेगा, ज्ञान और विज्ञान सीखने लगेगा, स्वाधीन व्यापारमें प्रवृत्त हो जायगा, सारे संसारकी यात्रा करके लोकव्यवहार सीखेगा, परिवार और समाजमें सत्यके आचरण और सत्यके अनुष्ठानका प्रचार करेगा, मनुष्य जिस प्रकार अपना मस्तक सहजमें लिए चलता है उसी प्रकार अनायास और स्वाभाविक रूपमें वह अपना सम्मान बराबर रक्षित रखकर लिए चलेगा, लालायित और लोलुप होकर दूसरोंके पास सम्मानकी भिक्षा माँगने न जायगा और 'धर्मो रक्षति रक्षितः' वाले सिद्धान्तका गूढ तात्पर्य पूर्ण रूपसे अपने मनमें समझ लेगा। यह बात सभी लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि जिस तरफ सुभीतेकी ढालू जगह होती है मनुष्य अनजानमें धीरे धीरे उसी तरफ ढलता जाता है । यदि हैटकोट पहनने, अँगरेजी भाषा बोलने और अँगरेजोंके दरवाजे जानेमें कोई सुभीता हो तो कुछ लोग हैट-कोट पहनने लग जायेंगे, अपने लड़कोंको बहुत कुछ प्रयत्न करके मातृभाषाका बोलना भुला देंगे और साहबोंके दरबानोंके साथ अपने पिता या भाईसे भी बढ़कर आत्मीयता स्थापित करने लग जायँगे । इस प्रवाहको रोकना बहुत ही कठिन है । लेकिन फिर भी अपने मनकी बातको स्पष्ट रूपसे प्रकट कर देना आवश्यक है। चाहे अरण्य-रोदन ही क्यों न हो तो भी हमें कहना ही पड़ता है कि अँगरेजीका प्रचार करनेसे कोई फल न होगा । देशकी स्थायी उन्नति तभी होगी जब शिक्षाकी नीव देशी भाषाओंपर रक्खी जायगी। अंगरेजोंसे आदर प्राप्त करनेका भी कोई फल न होगा। अपने मनुष्यत्वको सचेतन और जाग्रत करनेमें ही यथार्थ गौरव है। यदि किसीको धोखा देकर कुछ वसूल कर लिया जाय तो उससे यथार्थ प्राप्ति नहीं
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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