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________________ १५ अँगरेज और भारतवासी। लेकिन यह बात अंगरेजोंके समझनेकी नहीं है। इसके लिये उनके पास केवल एक ही शब्द है और वह शब्द है भीरुता । संसारमें अपने लिए भीरुता और पराएके लिये भीरुताके भेदका निर्णय करके किसी बातकी सृष्टि नहीं हुई। इसलिये ज्यों ही भीरु शब्दका ध्यान आता है त्यों ही उसके माथ दृढ़तापूर्वक जकड़ी हुई अवज्ञाका भी ध्यान होता है। हम लोग बड़े परिवार और बड़े अपमानका बोझ एक साथ ही ढोते हैं । इसके अतिरिक्त भारतवर्षके अधिकांश अँगरेजी समाचारपत्र सदा हम लोगोंके विरुद्ध रहते हैं । चाय रोटी और अंडेके साथ साथ हम लोगोंकी निन्दा भी भारतीय अँगरेजोंकी छोटी हाजिरीका एक अंग हो गई है। अँगरेजी साहित्य, गल्प, भ्रमण-वृत्तान्त, इतिहास, भूगोल, राजनीतिक प्रबन्ध और विद्रूपात्मक कवितायें, सभीमें भारतवासियों और विशेषतः शिक्षित बाबुओंके प्रति अँगरेजोंकी अरुचि बराबर बढ़ती ही जाती है। भारतवासी अपनी झोंपड़ियोंमें पड़े पड़े उसका बदला चुकानेकी चेष्टा करते हैं लेकिन भला हम लोग उसका क्या बदला चुका सकते हैं ! हम लोग अंगरेजोंकी कितनी हानि कर सकते हैं ! हम लोग मनमें नाराज हो सकते हैं, घरमें बैठकर गाल बजा सकते हैं लेकिन अँगरेज यदि केवल दो ही उँगलियोंसे हमारा मुलायम कान पकड़ कर जग जोरसे मल दें तो हमें चुपचाप सह लेना पड़ता है । और यह बात किसीसे छिपी नहीं है कि अंगरेजोंको इस प्रकार कान मलनेके छोटे और बड़े कितने प्रकार मालूम हैं और इसके लिये कितने अधिक अवसर मिलते हैं। अँगरेज मन ही मन हम लोगोंसे जितने ही विमुख होंगे और हम लोगोंकी ओरसे उनकी श्रद्धा जितना ही हट जायगी, हम लोगोंका सच्चा स्वभाव समझना, हम लोगोंका अच्छी तरह विचार
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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