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________________ राजा और प्रजा । यह लोग दया नहीं करते केवल उपकार करते हैं, स्नेह नहीं करते केवल रक्षा करते हैं, श्रद्धा नहीं करते बल्कि न्यायानुसार आचरण करने की चेष्टा करते हैं; जमीनको पानीसे नहीं सींचते पर हाँ, ढेरके ढेर बीज बोने में कंजूसी नहीं करते । लेकिन ऐसा करने पर यदि यथेष्ट कृतज्ञताके पौधे न उगें तो क्या उस दशा में केवल जमीनको ही दोष दिया जायगा ? क्या यह नियम विश्वव्यापी नहीं है कि यदि हृदयके साथ काम न किया जाय तो हृदयमें उसका फल नहीं फलता ? हमारे देशके शिक्षित-सम्प्रदाय के बहुत से लोग प्राणपण से इस बातको प्रमाणित करनेकी चेष्टा करते हैं कि अँगरेजोंने हम लोगोंके साथ जो उपकार किये हैं वे उपकार नहीं हैं । हृदयशून्य उपकारको ग्रहण करके वे लोग अपने मनमें किसी प्रकारके आनन्दका अनुभव नहीं कर सकते । वे लोग किसी न किसी प्रकार उस कृतज्ञताके भारसे मानों अपने आपको मुक्त करना चाहते हैं । इसी लिये आजकल हमारे यहाँके समाचारपत्रों में और बातचीत में अँगरेजों के सम्बन्ध में अनेक प्रकारके कुतर्क दिखाई देते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि अँगरेजोंने अपने आपको हम लोगों क लिये आवश्यक तो कर डाला है लेकिन अपने आपको प्रिय बनानेकी आवश्यकता नहीं समझी । वे हम लोगोंको पथ्य तो देते हैं परन्तु उस पथ्यको स्वादिष्ट नहीं बना देते और अन्तमें जब उसके कारण कै हो जाती है तब व्यर्थ आँखें लाल करके गरज उठते हैं। आजकलका अधिकांश आन्दोलन मनके गूढ क्षोभसे ही उत्पन्न है । इस समय प्रत्येक ही बात दोनों पक्षोंकी हार जीतकी बात हो जाती है । जिस अवसर पर केवल दो चार मुलायम बातें कहने से ही I
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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