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________________ परयता [6 पल्लु थो, 'पत पातु होगी.' आदि शब्दो के प्रयोग काल के कारण ही हो साते है। यहाँ गह भी समझना आवश्यक है कि किसी भी क्रिया अथवा पन्धिान के तीन में साल हो गाय कारण होता है। काल की सहायता के बिना कोई भी क्रिया अथवा परिवर्तन नही हो सकता। किलो साधु-महात्मा के दर्शन के लिए जाना हो तो काल अर्थात् समय चाहिए। किसी उत्तम अन्य का पारायण करना हो तो भी समय चाहिए। इसी प्रकार गर्भ ले वालक होने में, बालक से जवान होने में और जवान से वृद्ध होने में भी समय की आवश्यकता है। काल यह अरूपी--अदृश्य द्रव्य है। अतः इसे कोई पकड नही सकता। किन्तु नकेत के आधार पर इसका परिमाण-अदाज निकल सकता है। जैन-गास्त्रो मे यह माप-परिमाण इस प्रकार बतलाया गया है : काल का निर्विभाज्य भाग = समय असख्यात समय = आवलिका सख्यात आवलिका = श्वास दो श्वास = प्राण सात प्राण = स्तोक सात स्तोक - लव सतहत्तर लव = मुहूर्त तीस मुहूर्त = अहोरात्र ( २४ घण्टे) पन्द्रह अहोरात्र 3 पक्ष
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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