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________________ विश्वतन्त्र] १:धर्म-धर्मास्तिकाय। २: अधर्म-अधर्मास्तिकाय । ३ : आकाश-आकाशास्तिकाय । ४: काल। ५: पुद्गल-पुद्गलास्तिकाय । चेतन द्रव्य को जीव-जीवास्तिकाय कहा जाता है। सामान्य तौर पर धर्म और अधर्म शब्द पुण्य और पाप के अर्थ में ही प्रयुक्त होता है, किन्तु यहाँ इन्हे द्रव्य के नामविशेष के रूप मे ही ग्रहण करना चाहिए। ___ छह द्रव्यो मे से पाँच को अस्तिकाय कहा जाता है। इसका मूल कारण यह है कि इन द्रव्यो मे प्रदेशो का समूह विद्यमान रहता है जबकि काल मे प्रदेशो का समूह नहीं होता। अतः उसकी गणना अस्तिकाय मे नही की जाती। ये छह द्रव्य ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है. अर्थात् ये किसी के द्वारा उत्पादित नही है और ना तो इनका आत्यन्तिक विनाश भी होता है। बेशक इनके पर्यायो मे-इनकी अवस्थाओ मे अवश्य परिवर्तन होता रहता है। और इसी कारणवश यह लोक चिरतन सनातन होते हुए भी परिवर्तनशील माना जाता है। ऐसे समय मे जब पौराणिक मान्यताओ के स्तर असत्य प्रतीत होने लगे थे और विश्वव्यवस्था के लिये ईश्वर नामक एक अगम्य शक्ति-तत्त्व को आगे धरा जाता था तब ऐसी स्पष्ट वैज्ञानिक विचारधारा सर्वज्ञ के सिवाय भला दूसरा कौन प्रस्तुत कर सकता था ?
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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