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________________ ५८ ] [ भगवान् महावीर की अनुमति लेते समय वातावरण हृदयद्रावक बन गया । नन्दिवर्धन गद्गद् होकर कहने लगे कि - 'माता-पिता का दारुण वियोग तो अभी ताजा ही है, ऐसी स्थिति मे तुम हमे छोड़कर जाने की बात क्यो करते हो ? तुम्हारे वियोग का दुःख हमसे किंचित् भी सहन नहीं हो सकेगा । कम से कम दो वर्ष तो हमारे साथ रहो, फिर तुम्हे जैसा योग्य प्रतीत हो वैसा करना ।' भगवान् का हृदय इस समय वैराग्य से परिपूर्ण होने पर भी उन्होने बडों का सम्मान रखा और दो वर्ष रुकने का निर्णय किया, किन्तु अपना जीवन तो उसी दिन से एक त्यागी के अनुरूप बना लिया । वारह मास के अनन्तर उन्होने अपना सारा परिग्रह न्यून करना आरम्भ किया तथा दीन-दुखियों को एवं आवश्यकता वाले व्यक्तियों को अपने हाथों से सभी वस्तुएं बाँट दी और कुटुम्विजनो को देने योग्य जो वस्तुएं थी, वे उन्हें वितरित कर दी । * तीस वर्ष की अवस्था मे योगमार्ग ग्रहण किया । का था । ० भगवान् ने ससार का त्याग किया और यह दिन मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी & कल्पसूत्र में "दाणं दायारेहि परिभाइचा, दाणं दाइयाण परिभाइत्ता" हनों के द्वारा ये यात कही गयी है। 6 गुजराती मिति के अनुसार इसे कार्तिक वदी १० का दिन माना जाता 1 2
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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