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________________ ससार का त्याग] [५७ उस समय कुछ क्षत्रियकुल मामा को पुत्री को गम्य मानकर उसके साथ विवाह करते थे। ज्ञातकुल भी उनमे से एक था। भगवान के ज्येष्ठ भ्राता श्री नन्दिवर्धन ने भी अपने मामा चेटक को पुत्री 'ज्येष्ठा' के साथ विवाह किया था। प्रियदर्शना को जन्म देने के कुछ समय पश्चात् यशोदादेवी का स्वर्गवास हुआ अथवा दीर्घकाल तक जीवित रही, यह कहा नही जा सकता; क्योकि आगे उनके सम्बन्व मे कोई उल्लेख प्राप्त नही होता। दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार भगवान् महावीर ने अखण्ड कौमारव्रत का पालन किया था। विवाह करने के लिये सम्बन्धी जनो का बहुत आग्रह होने पर भी उन्होने विवाह करना कथमपि स्वीकार नही किया था। • संसार का त्याग भोगमार्ग त्याग कर योगमार्ग गहण करने की तथा उसके निमित्त ससार-त्याग करने की भावना तो भगवान् महावीर के दिल में दीर्घकाल से ही थी, किन्तु इस ओर कदम रखने में माता-पिता के वात्सल्यपूर्ण कोमल हृदय को गहरी चोट पहुंचेगी, ऐसा नमरर वे मोन-बैठे थे। उनकी इस चिर-अभिनपित आगना मो मां ने ग अवसर अट्ठाइस वर्ष की आयु में उपस्थित हुला, मा . पिता दोनो ही स्पर्ग निधार गये। किन्तु उस दामों
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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