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________________ ४२] [प्रस्तावना • धर्म और अभय भगवान ने कहा-धर्म पवित्र आत्मा मे रहता है। प्रश्न होता है, पवित्रता क्या है ? उसका उत्तर है कि अभय ही पवित्रता है। यद्यपि पवित्रता का मौलिक रूप अहिंसा है, फिर भी जहा भय होता है, वहाँ अहिंसा नही हो सकती, इसलिए अभय ही पवित्रता है। अभय अहिंसा का आदि विन्दु है। भगवान के प्रवचन का मूलमन्त्र हैं-डरो मत ! जो डरता है वह अपने को अकेला अनुभव करता है, असहाय मानता है। भूत उसी के पीछे पडता है जो डरता है। डरा हुआ मनुष्य दूसरो को भी डरा देता है । डरा हुआ मनुष्य तप और समय को भी तिलाजलि दे देता है। डरा हुआ मनुष्य अपने दायित्व को नही निभाता-उठाए हुए भार को वीच मे डाल देता है। डरा हुआ मनुष्य सत्पथ का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता, इसलिए डरो मत ! न भयावनी परिस्थिति से डरो, न भयावने वातावरण से डरो! न व्याधि से डरो, न असाध्य रोग से डरो ! न बुढापे से डरो, न मौत से डरो ! किसी से भी मत डरो! जिसका अन्तःकरण अभय से भावित होता है, वही व्यक्ति सत्य की सम्पदा को पा सकता है। • साम्ययोग भगवान् महावीर के समूचे धर्म का प्रतिनिधि शब्द है 'सामायिक' । सामायिक का अर्थ है, समता की प्राप्ति। सब जीव समान हैं-इस धारणा से परत्व और ममत्व दोनों मिटते हैं और समत्व का विकास होता है। परत्व से उप पलता है और ममत्व से राग । इनसे
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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