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शिक्षापद]
[४१७ अपने आप को जब मन से, वचन से एव काया से स्खलित होता हुआ देखे तब सयमी पुरुष को शीघ्र ही संभल जाना चाहिये। जिस प्रकार जातिवन्त शिक्षित घोडा नियमित मार्ग पर चलने के लिये शीघ्र ही लगाम को ग्रहण करता है, उसी प्रकार साधु भी संयम-मार्ग पर चलने के लिए सम्यक् विधि का अवलम्बन करे। मीहं जहा खुड्डमिगा चरंता,
दूरे चरंति परिसंकमाणा ।। एवं तु मेहावि समिक्ख धम्म,
दूरेण पावं परिवजएजा ॥२२॥
[सू० श्रु० १, अ० १०, गा० २० ] अरण्य मे विचरते हुए क्षुद्र वनपशु जिस तरह (अपने को उपद्रव करनेवाले) शेर की शंका से दूर हो दूर रहते है, उसी तरह बुद्धिमान् पुरुष धम को विचारकर (अपने को उपद्रव करनेवाले) पापो से अति दूर रहे।
सवणे नाणे य विनाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । अण्हवणे तवे चेव, वोदाण अकिरिया सिद्धी ॥२३॥
[भग २० २, गा०५] ज्ञानियों को पयुपासना करने से धर्मश्रवण की प्राप्ति होती है। धर्म-श्रवण से ज्ञान की प्राति होती है। ज्ञान से विज्ञान (विशिष्ट ज्ञान ) की प्राप्ति होती है। विज्ञान से प्रत्याश्यान (विरति ) की