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परभव]
[४०३ और मोक्षसुख की आशा है उस धर्म की ओर अवश्य दृष्टि रखनी चाहिये। पच्छा वि ते पयाया,
खिप्पं गच्छन्ति अमरभवणाई। जसिं पियो तवो संजमो, __य खंती य बंभचरं च ॥३४॥
[दश० भ० ४, गा० २८] जिन पुरुषो को तप, सयम, क्षमा और ब्रह्मचर्य प्रिय है । पिछली अवस्था मे भी दीक्षित हो जाने पर ( तथा सयम-मार्ग न्यायपूर्वक चलने से ) शीघ्र ही देवलोक मे चले जाते है।
अह जे संवुडे भिक्खू, दोहं अन्नयरे सिया। सम्बदुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिडिए ॥३॥
[उत्त० अ० ५, गा० २५] जो संवरयुक्त भिक्षु है, वह दो मे से एक गति को अवश्य प्राप्त हो जाता है। वह सर्व दुःख से रहित सिद्ध होता है, अन्यथा महाऋद्धि वाला देव बनता है।
इड्डी जुई जसो वणो, आउं सुहमणुत्तरं । भुञ्जो जत्थ मगुस्सेसु, तत्थ से उववजई ॥३६॥
[उत्त० अ०७, गा० २७ ] देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर वह पुण्यात्मा जीव मानव-कुल मे