________________
परभव]
[ ३६६
ऐसे मनुष्यो को समझना चाहिये कि मानुषिक काम-भोग देवों के काम-भोगो के सामने सहस्त्रगुण अधिक करने पर भी न्यून हैं तथा देवो की आयु और उनके काम-भोग दिव्य है।
प्रज्ञावान् अर्थात् ज्ञान-क्रिया आराधक आत्मा मृत्यु के बाद देवलोक मे जाता है और वहाँ उनकी स्थिति अनेक नयुत वर्षों तक अर्थात् अमुक पल्योघम वा सागरोपम तक होती है। उसको मूर्ख मनुष्य कुछ कम सौ वर्ष की आयु मे विषयभोगो के वशीभूत होकर हार देते हैं।
विवेचन-काकिणी और आम्रफल के दृष्टान्त उत्तराध्ययन सूत्र की वृहद्वृत्ति से देखना चाहिये।
जहा य तिन्नि वणिया, मूल घेत्तूण निग्गया । एगोऽत्थ लहई लाभं, एगो मूलेण आगओ ॥२२॥ एगो मूलं वि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ॥२३॥
[उत्त० भ० ७, गा० १४-१५ ] किसी समय मे तीन व्यापारी अपनी-अपनी मूल पूंजी को लेकर व्यापार के निमित्त विदेश मे गए। उन तीनो मे से एक को तो व्यापार मे लाभ हुआ, दूसरा अपनी मूल पूंजी को कायम रखता हुआ घर को आ गया और तीसरा मूलधन को भी खो करके घर आ गया। यह जैसे व्यावहारिक उपमा है, उसी प्रकार धर्म के विषय मे भी समझना।