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परभव]
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अयकक्करभोई य, तुंदिल्ले चियलोहिए । आउयं नरकं कंखे, जहाऽऽएसं व एलए ॥१५॥
उत्त० अ० ७, गा० ५ से ७ ] जो अज्ञानी हिंसा करनेवाला, झूठ बोलनेवाला, मार्ग मे लूटनेवाला, बिना दिये किसी की वस्तु उठानेवाला, चोरी करनेवाला, छलकपट करनेवाला, और "किसकी चोरी करूं'ऐसादुष्ट विचार करनेवाला, फिर स्त्री और विषयो मे आसक्त, महान् आरम्भ और परिग्रह करने वाला, मदिरा तथा मास का सेवन करनेवाला, बलवान होकर दूसरों को दवानेवाला तथा भुजे हुए चने की तरह बकरे का मास खानेवाला, बडा पेटवाला और पुष्ट शरीरवाला है, वह नरकायु की आकाक्षा करता है, जिस तरह पोषा हुआ बकरा अतिथि की ।। तात्पर्य यह की उसकी दुर्गति निश्चित है।
असणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुजिया। दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहुं संचिणिया रयं ॥१६॥ तओ कम्मगुरू जंतु, पच्चुप्पन्नपरायणे । अय व्य आगयाएसे, मरणंतम्भि सोयई ॥१७॥
[उत्त० भ०७, गा०८-६] जिसने विविध प्रकार के आसन, शय्या और वाहन का उपभोग किया है एव सपत्ति और शब्दादि विषयो को अच्छी तरह भोग लिया है, वह बहुत कर्म-रज का सचय करके और अति कष्ट से एकत्रित किया हुआ धन इधर छोड के मरण के समय ऐसा शोक