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लेण्या ]
[३८५ लेसाहिं सबाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववत्ति, परे भवे अत्थि जीवस्स ॥३२॥ लेसाहिं सवाहि, चरम समयम्भि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववत्ति, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥३३॥ अंतमुहुत्तंमि गए, अंतमुहुत्तंमि सेसए चेव । लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥३४॥
[उत्त० अ० ३४, गा०५८ से०६० ] सर्व लेश्याओ की प्रथम समय मे परिणति होने से किसी भी जीव की परलोक मे उत्पत्ति नही होती, अर्थात् यदि लेश्या को आये हुए एक समय हुआ हो तो उस समय जीव परलोक की यात्रा नहीं करता।
सर्व लेश्याओ की परिणति मे अन्तिम समय पर किसी भी जीव की उत्पत्ति नहीं होती। ___अन्तर्मुहूर्त के बीत जाने पर और अन्तर्मुहूर्त के शेष रहने पर लेश्याओ के परिणत होने से, जीव परलोक मे गमन करते है । तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावे वियाणिया। अप्पसत्थाओ वजित्ता, पसत्थाओऽहिट्ठिए मुणी॥३॥
[उत्त० भ० ३४, गा० ६१] इसलिए इन लेश्याओ के अनुभाव ( रसविशेष ) को जानकर साधु अप्रशस्त लेश्याओ को छोड़कर प्रशस्त लेश्याओ को स्वीकार करे।
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