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________________ लेग्या ] [ ३७६ तेजोलेश्या का वर्ण हिगुल धातु, तरुण सूर्य, तोते की चोच और दीपशिखा के रंग समान रक्त होता है । पद्मलेश्या का वर्ण हरिताल, हल्दी के टुकडे तथा सण और असन के पुष्प समान पीला होता है । शुक्ललेश्या का वर्ण गख, अकरल, मुचकुन्द पुष्प, दुग्धवारा तथा रजत के हार के समान उज्ज्वल- श्वेत होता है । जह कडुयतुं वगरसो, निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसोय किन्हाए नायची ||८|| जह तिगइयस्स यरमो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अनंतगुणी, रसोउ नीलाए नायची ॥६॥ जह तरुण अवगरसो, तुवरकविस्य वावि जारिओ । एत्तो वि अनंतगुणी, रसोउ काऊए नाय ॥१०॥ जह परिणयंचगरसो, पक्कवि वावि जानिओ । एता व अनंतगुणो. सोनावनी ||११|| वरवारुणीए चरम, विविताण व आसान जागी। मरनेर व रस. एनी पहा ॥१२॥ प ं सज्जग्मुरियो, सीम एच पि अनगुण सोना 3T I ܀ ܝ : ؟ ܕ 1 ܕ ܥ ܕ
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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