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________________ ३७८ ] [ श्री महावीर वचनामृत चासपिच्छसमप्पभा । नीलासोगसंकासा, वेरुलियनिभसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥३॥ अयसी पुप्फसंकासा, कोईलच्छदसन्निभा । पारेवयगीवनिभा, काऊलेसा उ वण्णओ ॥४॥ हिंगुलधाउसंकासा, तरुणाइचसन्निभा | सुयतुंडपईव निभा, तेओलेसा उ वण्णओ ||५|| हरियाल भेयसंकासा, हलिद्दा भेयसमप्पभा | सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ ||६॥ संखंककुंदसं कासा, रययहारसंकासा, खीरपूरसमप्पभा । सुक्कलेसा उ चण्णओ ॥७॥ [ उत्त० अ० ३४, गा० ४ से ९] कृष्णलेग्या का वर्ण जलयुक्त मेघ, महिप का शृंग, काक पक्षी, अरीठा, शकट की कीट, काजल और नेत्रतारा के समान कृष्ण होता है । नील्लेश्या का वर्ण नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी की पल और स्निग्ध वैडूर्यमणि के समान नील होता है । कापोतलेश्या का वर्ण अलमी के पुष्प, कोयल के पर और कबूतर की ग्रीवा ( गर्दन) के समान कत्यई ( किंचित् कृष्ण और किंचित् रक्त ) होता है ।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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