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[ श्री महावीर वचनामृत चासपिच्छसमप्पभा ।
नीलासोगसंकासा, वेरुलियनिभसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥३॥
अयसी पुप्फसंकासा,
कोईलच्छदसन्निभा ।
पारेवयगीवनिभा, काऊलेसा उ वण्णओ ॥४॥ हिंगुलधाउसंकासा, तरुणाइचसन्निभा | सुयतुंडपईव निभा, तेओलेसा उ वण्णओ ||५||
हरियाल भेयसंकासा, हलिद्दा भेयसमप्पभा | सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ ||६॥
संखंककुंदसं कासा,
रययहारसंकासा,
खीरपूरसमप्पभा । सुक्कलेसा उ चण्णओ ॥७॥
[ उत्त० अ० ३४, गा० ४ से ९]
कृष्णलेग्या का वर्ण जलयुक्त मेघ, महिप का शृंग, काक पक्षी, अरीठा, शकट की कीट, काजल और नेत्रतारा के समान कृष्ण होता है ।
नील्लेश्या का वर्ण नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी की पल और स्निग्ध वैडूर्यमणि के समान नील होता है ।
कापोतलेश्या का वर्ण अलमी के पुष्प, कोयल के पर और कबूतर की ग्रीवा ( गर्दन) के समान कत्यई ( किंचित् कृष्ण और किंचित् रक्त ) होता है ।