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[श्री महावीर-वचनामृत __ अभितुर पारं गमित्तए,
समयं गोयम ! मा पमायए ॥२७॥
[उत्त० म० १०, गा० ३४] निःसदेह तू संसारसमुद्र को तैर गया है, फिर भला किनारे 'पहुँच कर क्यों बैठ रहा है ! उस पार पहुँचने के लिये तुझे शोघ्नता करनी चाहिये। इसमे हे गौतम ! तू समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। अणाइकालप्पभवस्स
सबस्स दुस्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच सत्ता, कमेण अच्चन्तसुही भवन्ति ॥२८॥
[उत्त० भ० ३२, गा० १११] अनादि काल से उत्पन्न समस्त दुःखो से छूटने का यह मार्ग वतलाया गया है, जिसका पूर्णतया आचरण कर जीव क्रमशः अत्यन्त सुखी होते हैं।