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[श्री महावीर-वचनामृत प्रवृत्ति पर नियंत्रण पाने पर ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अप्रमत्त सावक को दीर्घकाल तक सयम का आचरण करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से वह शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। खिप्पं न सकेइ विवेगमेउ,
तम्हो समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी, आयाणुरक्खी चरेऽप्पमत्तो ॥६॥
[उत्त० अ० ४, गा० १०] विवेक शीघ्र ही प्राप्त नहीं हो सकता। अतः आत्मानुरक्षी साधक काम-भोग का परित्याग कर और समभाव पूर्वक लोक का स्वरूप जान कर अप्रमत्त रूप से विचरण करे। दुमपत्तए पंड्डयए, जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१०॥
उत्त० अ० १०, गा० १] रात्रि वीतने पर वृक्ष के पीले पत्ते झड जाते हैं, उसी तरह मनुष्य के जीवन का भी एक न एक दिन अन्त आता ही है ; ऐसा समझ कर हे गौतम ! तू समय मात्र का प्रमाद मत कर।
विवेचन-काल के सूक्ष्मतम विभाग को समय कहते हैं। उसकी तुलना मे क्षण बहुत वडा काल है। कुसग्गे जह ओसविन्दुए,
थोवं चिट्ठ लम्बमाणए ।