________________
३०२]
[श्री महावीर-वधनामृत हो जा। जो मनुष्य असयमी बनकर काम-मूच्छित हो जाते हैं, वे मोह को प्राप्त होते है अर्थात् हिताहित का विवेक करने मे शक्तिमान् नही -बनते।
अधुवं जीवियं नच्चा, सिद्धि मग्गं वियाणिया। . विणिअट्टज भोगेसु, आउं परिमिअमप्पणो ॥२३॥
[दश० म०८, गा० ३४] - मनुष्य की आयु परिमित ( अल्प ) है; और प्राप्त जीवन क्षणभंगुर है। मात्र सिद्धिमार्ग हो नित्य है, ऐसा मानकर भोगों से निवृत्त होना चाहिये। संबुज्झह ! किं न बुज्झह ?
संबोहि खलु पेच्च दुल्लहा । नो हूवणमन्ति राइओ,
नो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥२४॥
[सू० श्रु० १, भ०२, उ०१ गा.१] हे लोगो ! तुम समझो 1 इतना क्यो नहीं समझते कि परलोक मे सम्बोधि अर्थात् सम्यगदर्शन की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है। जो रात्रियों वीत जाती हैं, वे पुनः लौट नही आती और मनुष्य का जीवन भी पुनः प्राप्त होना सुलभ नही है। साराश यह है कि कामभोग का परित्याग करके इस जीवन मे जितना बन सके उतना आत्मकल्याण कर लो। इह जीवियमेव पासहा.
तरुणे वाससयस्स तुट्टई ।