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[श्री महावीर-वचनामृत
तिविहेण वि पाण मा हणे.
आयहिते अणियाण संवुड । एवं सिद्धा अणंतसो,
संपइ जे अ अणागयावरे ॥२०॥
[सु. ६०१, २०२, उ० ३, गा०२१] आत्मकल्याण के लिये मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना, संयमपालन के फलस्वल्प किसी सांसारिक सुख की इच्छा नहीं रखना और तीन गुप्तियों का पालन करना। इस प्रकार अनन्त आत्माएं सिद्धि-पद को प्राप्त हुई है, वर्तमान काल मे सिद्ध हो रही है और भविष्य में भी होंगी।