________________
२४]
[श्री महावीर-चक्नामत
किसी के पूछने पर अथवा पूछे विना सावु ऐसा कभी न कहे कि यमुक आहार सरस था, और अमुक नीरस । वह बाहार बहुत अच्छा या और वह बहुत खराव । सा उसके लाभालाभ की चर्चा मी न करे।
विणएण पविसिचा, सगासे गुरुणो मुणी। इरियावहियमायाय, आगओ य पडिक्कमे ॥४०॥
[दगु० म०५, २०१, गा० ८८] गोचरी से लौटकर आने के पश्चात् साधु विनयपूर्वक अपने स्यान में प्रवेश करे और गुरु के समक्ष आकर, ईर्यावही का पाठ करके कायोत्सर्ग करे।
आमोइत्ता ण नीसेसं, अइयारं जहक्कमं । गमणागमणे चव, भत्तपाणे व संजए ॥४१॥ उज्जुप्पन्नो अणुन्निग्गो, अन्नक्खित्र्तण चेयसा । आलोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे ॥४२।।
[दग० न० ५, उ० १, गाः ८६-६०] कायोत्सर्ग करते समय मावु आने-जाने में तथा आहार-पानी प्रहण करने मे तो कोई व्यतिवार लगे हों उन सब को वह ययान्म याद करे और उसके लिए हृदय से खेद प्रकट करे। _ वाद में सरलचित्तवाला और अनुहिन ऐसा सावु अन्याक्षिन्त वित्त से गोवरी को मिली, उसका वर्णन गुरु के समक्ष निवेदित करे।