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[श्री महावीर-वचनामृत अन्यान्य विचारो मे होश न खो कर आगे कही गई विधि के अनुसार आहार-पानी की गवेषणा करे।
से गामे वा नगरे वा, गोयरग्गओ मुणी। चरे मन्दमणुबिग्गो, अवक्खित्तेण चेयसा ॥७॥
[ दश० अ० ५, उ० १, गा० २] गाँव में अथवा नगर मे गोचरी के लिये गया हुआ मुनि उद्वगरहित बनकर स्वस्थ चित्त हो धीरे-धीरे चले।
पुरओ जुगमायाए, पेहमाणो महिं चरे। वज्जंतो वीयहरियाई, पाणे य दगमट्टियं ॥८॥
[दश० अ० ५, उ० १, गा० ३] मुनि अपने सामने की घुरा प्रमाण ( चार हाथ जितनी ) भूमि को देखता हुआ चले। वह चलते समय बीज, हरी वनस्पति, सूक्ष्म जीवजन्तु तथा कीचड आदि को छोड़कर चले अर्थात् इन पर पर न पड़ जाय इसकी पूरी सावधानी रखे।
न चरेज वासे वासंते, महियाए वा पडंतिए | महावाए व वायंते, तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥६॥
[ दश० अ०५, उ० १, गा०१०] वर्षा हो रही हो, कुहासा छा रहा हो, आंधी चल रही हो अथवा पतगे आदि अनेक प्रकार के जीवजन्तु उड़ रहे हों, ऐसी परिस्थिति मे साघु अपने स्थान से बाहर न निकले।