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________________ मिक्षाधरी] [२३ भिक्षावृत्तिवाले मिक्षक को भिक्षा का ही अवलम्बन करना चाहिये, परन्तु मूल्य देकर कोई भी वस्तु नही खरीदनी चाहिये, क्योकि क्रय-विक्रय मे महादोष है और भिक्षावृत्ति सुख देनेवाली है। कालेण निक्खमे भिक्खू , कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवजिता, काले कालं समायरे ॥४॥ [उत्त० भ०१, गा० ३१ ] साधु नियत समय पर भिक्षा के लिए जाए और वहाँ से यथा समय लौट आये। वह अकाल को छोडकर योग्य काल में उसके अनुरूप क्रिया करे। सइकाले चरे भिक्खू , कुजा पुरिसकारियं । अलाभुत्ति न सोएजा, तवोत्ति अहियासए ।शा [दश० अ०५, उ० २, गा०६] भिक्षुक समय होते ही भिक्षा के लिए जाए और यथोचित पुरुषार्थ करे। कभी भिक्षा नही मिले तो शोक न करे, परन्तु उस समय 'चलो सहज तप होगा' ऐसा विचार कर क्षुधादि परीषहमें को सहन करे। संपत्ते भिक्खकालम्मि, असंभंतो अमुच्छिओ। ___ इमेण कम्मजोगेण, भत्तपाणं गवेसए ॥६॥ [दश मे० ५, उ० १, गा०१] भिक्षा का समय होने पर साघु उत्सुक और आहारादि के
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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