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मिक्षाधरी]
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भिक्षावृत्तिवाले मिक्षक को भिक्षा का ही अवलम्बन करना चाहिये, परन्तु मूल्य देकर कोई भी वस्तु नही खरीदनी चाहिये, क्योकि क्रय-विक्रय मे महादोष है और भिक्षावृत्ति सुख देनेवाली है।
कालेण निक्खमे भिक्खू , कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवजिता, काले कालं समायरे ॥४॥
[उत्त० भ०१, गा० ३१ ] साधु नियत समय पर भिक्षा के लिए जाए और वहाँ से यथा समय लौट आये। वह अकाल को छोडकर योग्य काल में उसके अनुरूप क्रिया करे।
सइकाले चरे भिक्खू , कुजा पुरिसकारियं । अलाभुत्ति न सोएजा, तवोत्ति अहियासए ।शा
[दश० अ०५, उ० २, गा०६] भिक्षुक समय होते ही भिक्षा के लिए जाए और यथोचित पुरुषार्थ करे। कभी भिक्षा नही मिले तो शोक न करे, परन्तु उस समय 'चलो सहज तप होगा' ऐसा विचार कर क्षुधादि परीषहमें को सहन करे।
संपत्ते भिक्खकालम्मि, असंभंतो अमुच्छिओ। ___ इमेण कम्मजोगेण, भत्तपाणं गवेसए ॥६॥
[दश मे० ५, उ० १, गा०१] भिक्षा का समय होने पर साघु उत्सुक और आहारादि के