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________________ २६] [श्री महावीर-वचनामत समाइ पहाड परिचयंतो, - सिया मणो निस्सरई वहिद्धा । 'नसा महं नो वि अहं वि तीसे, इच्चेव ताओ विणएज रागं ॥२६॥ [दश० अ० २, गा० ४] समदृष्टिपूर्वक सयमयात्रा में विचरण करते हुए भी कदाचित ६ परिभुक्त भोगो का स्मरण होने से अथवा अभुक्त भोगों के भोगने की वासना जागृत होने से) संयमी पुरुष का मन संयममार्ग से विचलित होने लगे तब उसे ऐसा विचार करना चाहिये कि 'विषयमोगो की सामग्री. मेरी नहीं है और मैं इनका नही हूं।' इस प्रकार सुविचार के अंकुश से उसके मन मे उत्पन्न क्षणिक आसक्ति को दूर करे। सच्चा तहेव मोसा य, सच्चमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, वयगुत्ती चउबिहा ॥३०॥ [उत्त० अ० २४, गा० २२ ] वचनगुप्ति चार प्रकार की हैं :-(१) सत्य भाषा सम्बन्ची, २) असत्य भाषा सम्बन्धी, (३) सत्यासत्य भाषा सम्बन्ची और (53) असत्यामृषा-भाषा सम्बन्धी। संरंभसमारंभे, आरम्भे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज जयं जई ॥३१॥ [उत्त० भ०२४, गा० २३] .
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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