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[श्री महावीर-वचनामृत
वस्तुओ को परिग्रह नही कहा है, बल्कि उनके प्रति मन मे रहे ममत्व को परिग्रह कहा है।
सम्वत्युवहिणा वुद्धा, संरक्षणपरिग्गहे । अवि अप्पणो वि देहम्मि, नाऽऽयरंति ममाइयं ॥२०॥
दश० म०६, गा० २६ ] ज्ञानी पुरष वस्त्र, पात्र आदि सर्वप्रकार की साधन सामग्री के संरक्षण या स्वीकार मे ममत्व-वृत्ति का अवलम्बन नही रखते । अधिक क्या ? वे अपने शरीर के प्रति भी ममत्व नहीं रखते।