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________________ ( २० ) कला के अभिनव प्रयोग से पुरातन धार्मिक, सास्कृतिक तत्वों को अपने युगकी अभिनव शैली मे अभिव्यक्त कर के जनता-जनार्दन के हाथो मे समर्पित करे। __ शतावधानी पण्डित धीरजमाई द्वारा समलित और सम्मादित "श्रीमहावीर वचनामृत" इस दिशा मे एक सुन्दर और स्तुत्य प्रयास है। इसके पठन-पाठन से जन-जीवन को एक पावन प्रेरणा मिलेगी। हिन्दी मे ही नही, भारत की अन्य भाषाओं तथा अंग्रेजी मे भी इसका रूपान्तर होना चाहिए। अधिक से अधिक मनुष्यों के हायो मे श्रमण भगवान् महावीर का यह सार्वजनीन शाश्वत सन्देश पहुच सके, इस प्रकार के हर किसी प्रयल से मुझे परम प्रसन्नता होगी। जैन भवन उपाध्याय लोहामण्डी, आगरा अमर मुनि ता० २२-६-६३ भगवान महावीर जैन धर्म के अन्तिम तीर्थडर थे। उन्होंने वारह वर्षों की कठोर साधना के पश्चात् सर्वज्ञ सर्वदर्शी बनकर जिस सत्य का प्रतिपादन अपनी दिव्य वाणी के द्वारा किया, वह उनसे पूर्व के तीर्थ करो के द्वारा प्रतिपादित रूप से भिन्न नही था। इसका सबसे बडा प्रमाण यह है कि भगवान् महावीर के पश्चात् जैन संघ में भेद पड़ जाने पर भी तात्त्विक मन्तव्यो मे कोई भेद नही पडा । आज भी समस्त जन सघों के तात्त्विक मन्तव्य वे ही हैं जो भगवान् महावीर के समय मे अखण्ड जैन संघ के थे। यह कोई सामान्य वात
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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